1. दाग से छुटकारा पाने के लिए उसे बिना देरी किए हुए तुरंत ही धो लें। अगर दाग सूख गया तो वह और गहरा हो जाएगा इसलिए उसे किसी गीली नैपकिन से पोंछ लें। 2. जैसे ही दाग लगे उस पर तुरंत ही साबुन का घोल लगाना चाहिए और 3-5 मिनट के बाद धो लेना चाहिए। गीले दाग को साफ करने में आसानी होती है। 3. अगर साबुन-सर्फ से दाग नहीं जा रहें हैं तो कपड़े को गरम पानी में भिगों दें और उसमें 1 चम्‍मच बेकिंग सोडा डाल दें। कपड़े को 15-20 मिनटों तक भिगोनें के बाद धो लें। 4. अगर आप खाने के दाग को बहुत देर के बाद देख रहीं हैं और वह सूख चुका है तो बिना देरी किए हुए उसे गरम पानी में डालकर उसमें सर्फ मिला दें। पर ध्‍यान रहे की आप कपड़ों पर दिए गए निर्देशों को जरुर पढ़ लें। 5. गरम पानी और सर्फ से धोने के बाद अगर फिर भी दाग रह जाते हैं तो उसे पानी से निकाल कर उस पर थोडा सा ब्‍लीचिंग पाउडर तब तक रगड़े जब तक वह दाग छूट न जाए। 6. आप चाहें तो तेल के गहरे दाग को छुडाने के लिए उसपर नींबू को रगड़ सकती हैं। इसके अलावा गरम पानी में नमक भी मिला सकती हैं पर नमक से कपड़े फेड हो जाते हैं इसलिए पहले थोडा सा नमक कपड़े के कोनों में लगा कर देख लें और फिर इसको इस्‍तमाल करें।Mobile Duniya
बादाम, गुलाब के फूल, चिरौंजी और पिसा जायफल रात को दूध में भिगो दें। सुबह इसे पीसकर इसका उबटन लगाएँ। इससे चेहरे के दाग-धब्बे मिटते हैं और त्वचा कांतिमय बनती है। 

* चंदन, गुलाब जल, पोदीने का रस एवं अंगूर का रस मिलाकर पेस्ट बनाएँ और उसे चेहरे पर लगाएँ। कुछ देर बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें। इस फेस पैक से चेहरे की झुर्रियाँ मिटती हैं। 

* धूप में अक्सर हमारी त्वचा झुलस जाती है और काली पड़ जाती है। त्वचा के रंग को पहले की तरह बनाने के लिए आम के पत्ते, जामुन, दारूहल्दी, गुड़ और हल्दी की बराबर मात्रा मिलाकर उसका पेस्ट बनाकर पूरे शरीर पर लगाएँ। कुछ समय रखने के बाद स्नान कर लें। इस लेप से त्वचा की रंगत निखरती है। 

* दो चम्मच सोयाबीन का आटा, एक बड़ा चम्मच दही व शहद मिलाकर पेस्ट बनाएँ तथा इस मिश्रण को कुछ देर चेहरे पर लगाकर चेहरा धो लें। इससे त्वचा में कसावट आती है। 

* नीम की पत्तियाँ, गुलाब की पत्तियाँ, गेंदे का फूल सभी को एक कटोरी पानी में उबालें तथा इस रस को चेहरे पर लगाएँ। इससे मुहाँसे निकलना बंद हो जाते हैं।
जय सांई राम़।।।

दो पके मीठे सेब बिना छीले प्रातः खाली पेट चबा-चबाकर खाने से गुस्सा शान्त होता है। पन्द्रह दिन लगातार खायें। थाली बर्तन फैंकने वाला और पत्नि और बच्चों को मारने पीटने वाला क्रोधी भी क्रोध से मुक्ति पा सकेगा। 

जिन व्यक्तियों के मस्तिष्क दुर्बल हो गये हो और जिन विद्यार्थियों को पाठ  याद नहीं रहता हो तो इसके सेवन से थोड़े ही दिनों में दिमाग की कमजोरी दूर होती है और स्मरण शक्ति बढ़ जाती है। साथ ही दुर्बल मस्तिष्क के कारण सर्दी-जुकाम बना रहता हो, वह भी मिट जाता है।

कहावत है - "एक सेब रोज खाइए, वैद्य डाक्टर से छुटकारा पाइए।"

या आंवले का मुरब्बा एक नग प्रतिदिन प्रातः काल खायें और शाम को गुलकंद एक चम्मच खाकर ऊपर से दुध पी लें। बहुत क्रोध आना बन्द होगा।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।http://forum.spiritualindia.org/

अगर तेज धूप से बचना है, तो लाल, केसरिया और पीले फलों को अपने आहार में शामिल करें। इस तरह के पांच से लेकर दस फल और सब्जियां आप अपने खानपान में शामिल कर, अपनी त्वचा को सुरक्षित कर सकते हैं। एरीजोना यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है। मूत्र-मार्ग में पनपने वाले विषाणु मूत्र तंत्र से संबंधित अनेक बीमारियां पैदा करते हैं। इसका खामियाजा मरीज को लंबे समय तक भुगतना पड़ता है। इससे बचाव का एक आसान तरीका है। प्रतिदिन आधा कप जामुन का रस पिएं या रोज 8-10 जामुन खाएं। इसके सेवन से मूत्र से संबंधित बीमारियां 58 प्रतिशत तक कम हो जाता हैं। सेलेनियम युक्त आहार जैसे मछली, भुने चने, खड़ी मूंग हृदय रोगों और प्रोस्टेट कैंसर से बचाव करने में सहायक हैं। सूरज की रोशनी में चलते समय शत-प्रतिशत अल्ट्रा वायलेटकिर ण-प्रतिरोधी चश्मों का उपयोग करना नहीं भूलें।



गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरूर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
अर्थः गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं। गुरूदेव ही शिव हैं तथा गुरूदेव ही साक्षात् साकार स्वरूप आदिब्रह्म हैं। मैं उन्हीं गुरूदेव के नमस्कार करता हूँ।

ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामलं गुरोः पदम्।
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा।।
अर्थः ध्यान का आधार गुरू की मूरत है, पूजा का आधार गुरू के श्रीचरण हैं, गुरूदेव के श्रीमुख से निकले हुए वचन मंत्र के आधार हैं तथा गुरू की कृपा ही मोक्ष का द्वार है।

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
अर्थः जो सारे ब्रह्माण्ड में जड़ और चेतन सबमें व्याप्त हैं, उन परम पिता के श्री चरणों को देखकर मैं उनको नमस्कार करता हूँ।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।।
अर्थः तुम ही माता हो, तुम ही पिता हो, तुम ही बन्धु हो, तुम ही सखा हो, तुम ही विद्या हो, तुम ही धन हो। हे देवताओं के देव! सदगुरूदेव! तुम ही मेरा सब कुछ हो।

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरूं तं नमामि।।

अर्थः जो ब्रह्मानन्द स्वरूप हैं, परम सुख देने वाले हैं, जो केवल ज्ञानस्वरूप हैं, (सुख-दुःख, शीत-उष्ण आदि) द्वंद्वों से रहित हैं, आकाश के समान सूक्ष्म और सर्वव्यापक हैं, तत्त्वमसि आदि महावाक्यों के लक्ष्यार्थ हैं, एक हैं, नित्य हैं, मलरहित हैं, अचल हैं, सर्व बुद्धियों के साक्षी हैं, सत्त्व, रज, और तम तीनों गुणों के रहित हैं  ऐसे श्री सदगुरूदेव को मैं नमस्कार करता हूँ।

सरस्वती-वंदना

माँ सरस्वती विद्या की देवी है। गुरूवंदना के पश्चात बच्चों को सरस्वती वंदना करनी चाहिए।

या कुन्देन्दुतषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाङयापहा।।
अर्थः जो कुंद के फूल, चन्द्रमा, बर्फ और हार के समान श्वेत हैं, जो शुभ्र वस्त्र पहनती हैं, जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमल के आसन पर बैठती हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देव जिनकी सदा स्तुति करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं, वे भगवती सरस्वती मेरा पालन करें।

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगदव्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाङयान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवती बुद्धिप्रदां शारदाम्।।
अर्थः जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परमतत्त्व हैं, जो सब संसार में व्याप्त रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अंधकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिक मणि की माला लिये रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वंदना करता हूँ।

सदुगुरू महिमा

श्री रामचरितमानस में आता हैः
गुरू बिन भवनिधि तरहिं न कोई। जौं बिरंधि संकर सम होई।।
भले ही कोई भगवान शंकर या ब्रह्मा जी के समान ही क्यों न हो किन्तु गुरू के बिना भवसागर नहीं तर सकता।
सदगुरू का अर्थ शिक्षक या आचार्य नहीं है। शिक्षक अथवा आचार्य हमें थोड़ा बहुत एहिक ज्ञान देते हैं लेकिन सदगुरू तो हमें निजस्वरूप का ज्ञान दे देते हैं। जिस ज्ञान की प्राप्ति के मोह पैदा न हो, दुःख का प्रभाव न पड़े एवं परब्रह्म की प्राप्ति हो जाय ऐसा ज्ञान गुरूकृपा से ही मिलता है। उसे प्राप्त करने की भूख जगानी चाहिए। इसीलिए कहा गया हैः

गुरूगोविंद दोनों खड़ेकिसको लागूँ पाय।
बलिहारी गुरू आपकीजो गोविंद दियो दिखाय।।

गुरू और सदगुरू में भी बड़ा अंतर है। सदगुरू अर्थात् जिनके दर्शन और सान्निध्य मात्र से हमें भूले हुए शिवस्वरूप परमात्मा की याद आ जाय, जिनकी आँखों में हमें करूणा, प्रेम एवं निश्चिंतता छलकती दिखे, जिनकी वाणी हमारे हृदय में उतर जाय, जिनकी उपस्थिति में हमारा जीवत्व मिटने लगे और हमारे भीतर सोई हुई विराट संभावना जग उठे, जिनकी शरण में जाकर हम अपना अहं मिटाने को तैयार हो जायें, ऐसे सदगुरू हममें हिम्मत और साहस भर देते हैं, आत्मविश्वास जगा देते हैं और फिर मार्ग बताते हैं जिससे हम उस मार्ग पर चलने में सफल हो जायें, अंतर्मुख होकर अनंत की यात्रा करने चल पड़ें और शाश्वत शांति के, परम निर्भयता के मालिक बन जायें।

जिन सदगुरू मिल जायतिन भगवान मिलो न मिलो।
जिन सदगरु की पूजा कियोतिन औरों की पूजा कियो न कियो।
जिन सदगुरू की सेवा कियोतिन तिरथ-व्रत कियो न कियो।
जिन सदगुरू को प्यार कियोतिन प्रभु को प्यार कियो न कियो।

दिनचर्या

1.                            बालकों को प्रातः सूर्योदय से पहले ही उठ जाना चाहिए। उठकर भगवान को मनोमन प्रणाम करके दोनों हाथों की हथेलियों को देखकर इस श्लोक का उच्चारण करना चाहिएः कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्यै सरस्वती। करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्।।
अर्थः हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी का निवास है, मध्य भाग में विद्यादेवी सरस्वती का निवास है एवं मूल भाग में भगवान गोविन्द का निवास है। अतः प्रभात में करदर्शन करना चाहिए।

2.                            शौच-स्नानादि से निवृत्त होकर प्राणायाम, जप, ध्यान, त्राटक, भगवदगीता का पाठ करना चाहिए।

3.                            माता-पिता एवं गुरूजनों को प्रणाम करना चाहिए।

4.                            नियमित रूप से योगासन करना चाहिए।

5.                            अध्ययन से पहले थोड़ी देर ध्यान में बैठें। इससे पढ़ा हुआ सरलता से याद रह जाएगा। जो भी विषय पढ़ो वह पूर्ण एकाग्रता से पढ़ो।

6.                            भोजन करने से पूर्व हाथ-पैर धो लें। भगवान के नाम का इस प्रकार स्मरण करें- ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्। ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।
प्रसन्नचित्त होकर भोजन करना चाहिए। बाजारू चीज़ नहीं खानी चाहिए। भोजन में हरी सब्जी का उपयोग करना चाहिए।

7.                            बच्चों को स्कूल में नियमित रूप से जाना चाहिए। अभ्याम में पूर्ण रूप से ध्यान देना चाहिए। स्कूल में रोज-का-रोज कार्य कर लेना चाहिए।

8.                            शाम को संध्या के समय प्राणायाम, जप, ध्यान एवं सत्साहित्य का पठन करना चाहिए।

9.                            रात्रि के देर तक नहीं जागना चाहिए। पूर्व और दक्षिण दिशा की ओर सिर रखकर सोने से आयु बढ़ती है। भगवन्नाम का स्मरण करते-करते सोना चाहिए।



अब जो कहानी मैं आप लोगों को सुनाने जा रहा हूँ वह है एक ऐसे आदमी की जिसको पता नहीं क्या सूझा कि वह शादी करने के लिए एक चुड़ैल के पीछे ही पड़ गया। वह उस चुड़ैल को पाने के लिए बहुत सारे हथकंडे अपनाए....पर क्या वह सफल हुआ? क्या वह चुड़ैल उससे शादी करने के लिए राजी हुई? आइए इस रहस्य पर से परदा उठाते हैं......।
बात कोई 13-14 साल पुरानी है और मेरे मित्र की माने तो एकदम सही। अरे इतना ही नहीं, मेरे मित्र के अलावा और भी कई लोग इस घटना को बनावटी नहीं सच्ची मानते हैं। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि मेरे मित्र और चुड़ैल के बीच जो रोमांचक बातें हो रही थी उसके वे लोग भी गवाह हैं क्योंकि उन लोगों ने वे सारी बातें सुनी।
तो आइए अब आपका वक्त जाया न करते हुए मैं अपने मित्र रमेश के मुखारबिंदु से सुनी इस घटना को आप लोगों को सुनाता हूँ।
उस समय रमेश की उम्र कोई 22-23 साल थी और आप लोगों को तो पता ही है कि गाँवों में इस उम्र में लोग बच्चों के बाप बन जाते हैं मतलब परिणय-बंधन में तो बँध ही जाते हैं।
हाँ तो रमेश की भी शादी हुए लगभग 4-5 साल हो गए थे और ढेड़-दो साल पहले ही उसका गौना हुआ था। उस समय रमेश घर पर ही रहता था और अपनी एम.ए. की पढ़ाई पूरी कर रहा था।
यह घटना जब घटी उस समय रमेश एक 20-25 दिन की सुंदर बच्ची का पिता बन चुका था। हाँ एक बात मैं आप लोगों को बता दूँ कि रमेश की बीबी बहुत ही निडर स्वभाव की महिला थी। यह गुण बताना इसलिए आवश्यक था कि इस कहानी की शुरुवात में इसकी निडरता अहम भूमिका निभाती है।
एक दिन की बात है कि रमेश की बीबी ने अपनी निडरता का परिचय दिया और अपनी नन्हीं बच्ची (उम्र लगभग एक माह से कम ही) और रमेश को बिस्तर पर सोता हुआ छोड़ चार बजे सुबह उठ गई। (गाँवों में आज-कल तो लोग पाखाना-घर बनवाने लगे हैं पर 10-12 साल पहले तक अधिकतर घरों की महिलाओं को नित्य-क्रिया (दिशा-मैदान) हेतु घर से बाहर ही जाना पड़ता था और घर की सब महिलाएँ नहीं तो कम से कम दो एक साथ घर से बाहर निकलती थीं। ये महिलाएँ सभी लोगों के जगने से पूर्व ही (बह्म मुहूर्त में) जगकर खेतों की ओर चली जाती थीं।)
ऐसा नहीं था कि रमेश की बीबी पहली बार चार बजे जगी थी, अरे भाई वह प्रतिदिन चार बजे ही जगती थी पर निडरता का परिचय इसलिए कह रहा हूँ कि और दिनों की तरह उसने घर के किसी महिला सदस्य को जगाया नहीं और अकेले ही दिशा मैदान हेतु घर से बाहर निकल पड़ी। (दरअसल गाँव में लड़कोरी महिला (जच्चा) जिसका बच्चा अभी 6 महीना तक का न हुआ हो उसको अलवाँती बोलते हैं और ऐसा कहा जाता है कि ऐसी महिला पर भूत-प्रेत की छाया जल्दी पड़ जाती है या भूत-प्रेत ऐसी महिला को जल्दी चपेट में ले लेते हैं। इसलिए ये अलवाँती महिलाएँ जिस घर में रहती हैं वहाँ आग जलाकर रखते हैं या कुछ लोग इनके तकिया के नीचे चाकू आदि रखते हैं।)
खैर रमेश की बीबी ने अपनी निडरता दिखाई और वह निडरता उसपर भारी पड़ी। वह अकेले घर से काफी दूर खेतों की ओर निकल पड़ी। हुआ यह कि उसी समय पंडीजी के श्रीफल (बेल) पर रहनेवाली चुड़ैल उधर घूम रही थी और न चाहते हुए भी उसने रमेश की बीबी पर अपना डेरा डाल दिया। हाँ फर्क सिर्फ इतना था कि वह पहले दूर-दूर से ही रमेश की बीबी का पीछा करती रही पर अंततः उसने अपने आप को रोक नहीं पाई और ज्यों ही रमेश की बीबी घर पहुँची उस पर सवार हो गई।
रमेश भी लगभग 5 बजे जगा और भैंस आदि को चारा देने के लिए घर से बाहर चला गया। जब वह घर में वापस आया तो अपनी बीबी की हरकतों में बदलाव देखा। उसने देखा कि उसकी बच्ची रो रही है पर उसकी बीबी आराम से पलंग पर बैठकर पैर पसारे हुए कुछ गुनगुना रही है।
रमेश एकबार अपनी रोती हुई बच्ची को देखा और दूसरी बार दाँत निपोड़ते और पलंग पर बेखौफ बैठी हुई अपनी बीबी को। उसको गुस्सा आया और उसने बच्ची को अपनी गोद में उठा लिया और अपनी बीबी पर गरजा,बच्ची रो रही है और तुम्हारे कान पर जूँ तक नहीं रेंग रही है। अरे यह क्या रमेश की बीबी ने तो रमेश के इस गुस्से को नजरअंदाज कर दिया और अपने में ही मस्त बनी रही।
रमेश का गुस्सा और बढ़े इससे पहले ही रमेश की भाभी वहाँ आ गईं और रमेश की गोदी में से बच्ची को लेते हुए उसे बाहर जाने के लिए कहा। अरे यह क्या रमेश का गुस्सा तो अब और भी बढ़ गया, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आज क्या हो रहा है, जो औरत (उसकी बीबी) अपने से बड़ों के उस घर में आते ही पलंग पर से खड़ी हो जाती थी वही बीबी आज उसके भाभी के आने के बाद भी पलंग पर आराम से बैठे मुस्कुरा रही है।
खैर रमेश तो कुछ नहीं समझा पर उसकी भाभी को सबकुछ समझ में आ गया और वे हँसने लगी। रमेश को अपनी भाभी का हँसना मूर्खतापूर्ण लगा और वह अपने भाभी से बोल पड़ा, अरे आपको क्या हुआये उलटी-पुलटी हरकतें कर रही है और आप हैं कि हँसे जा रही हैं। रमेश के इतना कहते ही उसकी भाभी ने उसे मुस्कुराते हुए जबरदस्ती बाहर जाने के लिए कहा और यह भी कहा कि बाहर से दादाजी को बुला लीजिए।
भाभी के इतना कहते ही कि दादाजी को बुला लाइए, रमेश सब समझ गया और वह बाहर न जाकर अपनी बीबी के पास ही पलंग पर बैठ गया। इतने ही देर में रमेश के घर की सभी महिलाएँ वहाँ एकत्र हो गई थीं और अगल-बगल के घरों के भी कुछ नर-नारी। अरे भाई गाँव में इन सब बातों को फैलते देर नहीं लगती और तो और अगर बात भूत-प्रेत की हो तो और भी लोग मजे ले लेकर हवाईजहाज की रफ्तार से खबर फैलाते हैं।
हाँ तो अब मैं आप को बता दूँ कि रमेश के कमरे में लगभग 10-12 मर्द-औरतों का जमावड़ा हो चुका था और रमेश ने भी सबको मना कर दिया कि यह खबर खेतों की ओर गए दादाजी के कान तक नहीं पहुँचनी चाहिए। दरअसल वह अपने आप को लोगों की नजरों में बहुत बुद्धिमान और निडर साबित करना चाहता था। वह तनकर अपनी बीबी के सामने बैठ गया और अपनी बीबी से कुछ जानने के लिए प्रश्नों की बौछार शुरु कर दी।
रमेश, कौन हो तुम?”
रमेश की बीबी कुछ न बोली केवल मुस्कुराकर रह गई।
रमेश ओझाओं की तरह फिर गुर्राया, मुझे ऐसा-वैसा न समझ। मैं तुमको भस्म कर दूँगा।
रमेश की बीबी फिर से मुस्कुराई पर इस बार थोड़ा तनकर बोली, तुम चाहते क्या हो?”
बहुत सारे लोगों को वहाँ पाकर रमेश थोड़ा अकड़ेबाजों जैसा बोला, “ ‘तुममत बोल। मेरे साथ रिस्पेक्ट से बातें कर। तुम्हें पता नहीं कि मैं ब्राह्मण कुमार हूँ और उसपर भी बजरंगबली का भक्त।
रमेश के इतना कहते ही उसकी बीबी (चुड़ैल से पीड़ित) थोड़ा सकपकाकर बोली, मैं पंडीजी के श्रीफल पर की चुड़ैल हूँ।
अपने बीबी के मुख से इतना सुनते ही तो रमेश को और भी जोश आ गया। उसे लगने लगा कि अब मैं वास्तव में इसपर काबू पा लूँगा। वहाँ खड़े लोग कौतुहलपूर्वक रमेश और उसकी बीबी की बातों को सुन रहे थे और मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे, अरे भाई मनोरंजन जो हो रहा था उनका।
रमेश फिर बोला,अच्छा। पर तूने इसको पकड़ा क्योंतुमके पता नहीं कि यह एक ब्राह्मण की बहू है और नियमित पूजा-पाठ भी करती है।
रमेश की चुड़ैल पीड़ित बीबी बोली, मैंने इसको जानबूझकर नहीं पकड़ा। इसको पकड़ना तो मेरी मजबूरी हो गई थी। यह इस हालत में अकेले बाहर गई क्योंखैर अब मैं जा रही हूँ। मैं खुद ही अब अधिक देर यहाँ नहीं रह सकती।
रमेश अपने बीबी की इन बातों को सुनकर बोला, क्यों क्या हुआ? डर गई न मुझसे।
रमेश के इतना कहते ही फिर उसकी बीबी मुस्कुराई और बोली, तुमसे क्या डर। मैं तो उससे डर रही हूँ जो इस घर पर लटक रहा है और मुझे जला रहा है। अब उसका ताप मुझे सहन नहीं हो रहा है। (दरअसल बात यह थी कि रमेश के घर के ठीक पीछे एक पीपल का पेड़ था और गाँववाले उस पेड़ को बाँसदेव बाबा कहते थे। लोगों का विश्वास था कि इस पेड़ पर कोई अच्छी आत्मा रहती है और वह सबकी सहायता करती है। कभी-कभी तो लोग उस पीपल के नीचे जेवनार आदि भी चढ़ाते थे। और हाँ इस पीपल की एक डाली रमेश के घर के उसी कमरे पर लटकती रहती थी जिसमें रमेश की बीबी रहती थी।)
चुड़ैल (अपनी बीबी) की बात सुनकर रमेश हँसा और बोला, जा मत यहीं रह जा। जैसे हमारी एक बीबी है वैसे ही तुम एक और।
रमेश के इतना कहते ही वह चुड़ैल हँसी और बोली, यह संभव नहीं है पर तुम मुझसे शादी क्यों करना चाहते हो?”
रमेश बोला, अरे भाई गरीब ब्राह्मण हूँ। कुछ कमाता-धमाता तो हूँ नहीं। तूँ रहेगी जो थोड़ा धन-दौलत लाती रहेगी।
रमेश के इतना कहते ही वह चुड़ैल बोली, तुम बहुत चालू है। और हाँ यह भी सही है कि हमारे पास बहुत सारा धन है पर उसपर हमारे लोगों का पहरा रहता है अगर कोई इंसान वह धन लेना चाहे तो हमलोग उसका अहित कर देती हैं। हाँ और एक बात, और वह धन तुम जैसे जीवित प्राणियों के लिए नहीं है।
रमेश अब थोड़ा शांत और शालीन स्वभाव में बोला, अच्छा ठीक है, तुम जरा कृपा करके एक बात बताओ, ये भूत-प्रेत क्या होते हैं, क्या तुमने कभी भगवान को देखा है, आखिर तुम कौन हो, क्या पहले तुम भी इंसान ही थी?”
चुड़ैल भी थोड़ा शांत थी और शांत थे वहाँ उपस्थित सभी लोग। क्योंकि सबलोग इन प्रश्नों का उत्तर जानना चाहते थे।
चुड़ैल ने एक गहरी साँस भरा और कहना आरंभ किया, भगवान क्या है, मुझे नहीं मालूम पर कुछ हमारे जैसी आत्माएँ भी होती हैं जिनसे हमलोग बहुत डरते हैं और उनसे दूर रहना ही पसंद करते हैं। हमलोग उनसे क्यों डरती हैं यह भी मुझे पता नहीं। वैसे हमलोग पूजा-पाठ करनेवाले लोगों के पास भी भटकना पसंद नहीं करते और मंत्रों आदि से भी डरते हैं।
रमेश फिर पूछा, खैर ये बताओ कि तुम इसके पहले क्या थीतुम्हारा घर कहाँ था, तुम चुड़ैल कैसे बन गई।
चुड़ैल ने रमेश की बातों को अनसुना करते हुए कहा, नहीं, नहीं..अब मैं जा रही हूँ। अब और मैं यहाँ नहीं रूक सकती। वे आ रहे हैं।
चुड़ैल के इतना कहते ही कोई तो कमरे में प्रवेश किया और रमेश को डाँटा,रमेश। यह सब क्या हो रहा है? क्या मजाक बनाकर रखे हो?” रमेश कुछ बोले इससे पहले ही क्या देखता है कि उसकी बीबी ने साड़ी का पल्लू झट से अपने सर पर रख लिया और हड़बड़ाकर पलंग पर से उतरकर नीचे बैठ गई और धीरे-धीरे मेरी बेटी-मेरी बेटी कहते हुए रमेश की भाभी की गोद में से बच्ची को लेकर दूध पिलाने लगी।
रमेश ने एक दृष्टि अपने दादाजी की ओर डाला और मन ही मन बुदबुदाया,आप को अभी आना था। सब खेल बिगाड़ दिए।आधे घंटे बाद आते तो क्या बिगड़ जाता।।।।।।



पाठक गण,
सादर नमस्कार।।
यह कहानीभूत-प्रेत की कहानियाँ यंहा से ली गयी है मुझे ये कहानी बहुत पसंद है इसलिए मेने सोचा की यह सभी के साथ शेयर की जाये आप यंहा जाकर भूतो की कहानिया काफी मात्र में देख सकते 


आज एक ऐसी घटना का वर्णन सुनाने जा रहा हूँ जो भूत-प्रेत से संबंधित तो नहीं है पर है चमत्कारिक। यह घटना सुनाने के लिए मैंने कई बार लेखनी उठाई पर पता नहीं क्यों कुछ लिख नहीं पाता था..पर आज पता नहीं क्या चमत्कार हुआ कि अचानक मूड बना और मैंने इस घटना को लेखनीबद्ध कर लिया।
इस घटना की सत्यता पर उंगली नहीं उठाई जा सकती क्योंकि लेखक (मैं) स्वयं इस घटना के घटने का केंद्र था। खैर यह मैं कह रहा हूँ..हो सकता है कि आपके तर्क कुछ और हों।।....आइए....सुनते हैं...इस चमत्कारिक घटना को.....

बात 3-4 साल पहले की है जब मैं मुंबई में एक संस्थान में शोध सहायक (रीसर्च एसोसियेट) के रूप में कार्यरत था। हमारे परम मित्र राणेजी के पास एक मारूती 800 थी। हमारे 2-3 मित्र इस पर अपना हाथ साफ करते रहते थे। मुझे भी चारपहिया चलाने का शौक जगा और एकदिन मैं अपने एक मित्र दीपकजी (जो चारपहिया चलाने में पारंगत हैं) के साथ स्टेयरिंग संभाल ली। शनिवार (शनि व रवि को इस संस्थान में अवकाश रहता है) का दिन था और दोपहर का समय। सड़क पर इक्के-दुक्के लोग या वाहन ही आ जा रहे थे। मैं मारूती चला रहा था और मेरे बगल में बैठे मेरे मित्र दीपकजी मेरा मार्गदर्शन कर रहे थे। इससे पहले भी मैंने थोड़ी-बहुत चारपहिया की स्टेयरिंग घुमाई थी। पर उस दिन मुझे बहुत आनंद आ रहा था क्योंकि मैं काफी अच्छी तरह से वाहन को नियंत्रण में रखकर कैंपस की सड़कों पर दौड़ा रहा था। अरे 1-2 घंटे दौड़ाने के बाद तो मैं अपने आप को मास्टर समझने लगा और मित्र दीपकजी की बातों को अनसुना करने लगा।

हम मारूती को दौड़ाते हुए हास्टल 8 के आगे के मोड़ से मोड़कर हास्टल 5 की ओर बढ़ें। पर यह क्या सड़क पर लगभग मारूती के 20 मीटर आगे दो छात्र बात करते हुए मस्ती में बढ़े जा रहे थे। दीपकजी ने मुझे ब्रेक लेकर गाड़ी को धीमे करने के लिए कहा...पर यह क्या मेरा पैर ब्रेक पर न जाकर एक्सीलेटर पर पड़ा और गाड़ी का स्पीड 40 के लगभग हो गया। मैं बार-बार रोकने की कोशिश कर रहा हूँ पर स्पीड बढ़ते जा रही है, मैं थोड़ा घबराया पर दीपकजी तो पसीने-पसीने हो गए थे। आगे दो बच्चों की जान का खतरा मुझे सताए जा रहा था...उनको बचाने के चक्कर में लगा कि तेज गाड़ी अब सड़क किनारे के एक आम के पेड़ से टकरा जाएगी और हम दोनों की इहलीला समाप्त हो जाएगी।

इस पूरी घटना को घटने में लगभग 1 से 2 मिनट का समय लगा होगा। मैंने बजरंगबली को याद किया और आँखें बंद कर ली। दीपकजी की मानो, काटो तो खून नहीं जैसी हालत हो गई थी। प्रभु की मर्जी या आप कहेंगे भाग्य ने साथ दिया....पेंड़ से लगभग एक फुट पहले कार का एक पहिया सड़क किनारे बने नाले में गया और इसके बाद उसी साइड का पीछे का पहिया भी। वे दोनों छात्र पेड़ से एक फुट आगे निकल चुके थे। पता नहीं क्यों मुझे हंसी छूट गई और अब मैंने अपनी आँखें भी खोल ली थीं। देखते ही देखते कार ने कल्टी (उलट गई) मार दी। हुआ यूं कि एक साइड के दोनों पहियों के नाले में जाते ही कार का दूसरी तरफ का भाग भी पूरी तरह से ऊपर उठा और दो बार उटल कर नाले के उस पार चला गया। नाले के उस पार जाने के बाद भी स्टेयरिंग वाला भाग (दोनों पहिए) ऊपर हो गए थे। मुझे कहीं खरोंच भी नहीं आई थी और अभी कुछ लोग दौंड़ कर आते उससे पहले ही मैं मुस्कुराते हुए, कूदकर अपने तरफ का दरवाजा खोलकर बाहर आ गया और दीपकजी को भी हाथ देकर बाहर निकाल लिया। अब तो वहाँ लगभग 20-25 लोग भी एकत्र हो गए थे। मारूती को सीधा करके सड़क पर लाया गया। भीड़ बढ़ती गई और जिन लोगों ने भी इस घटना को देखा था वे सकते में थे...हम दोनों को सही-सलामत देखकर। इसका मतलब यह नहीं कि वे हम लोगों का अहित चाहते थे....पर जिस प्रकार यह घटना घटी वह विस्मय करनेवाली थी।

लोगों के सहानुभूतिपूर्ण प्रश्नों से बचने के लिए मैंने दीपकजी से तुरंत गाड़ी चालू करने के लिए कहा और गाड़ी चालू भी हो गई। फिर हम दोनों बैठकर देवी मंदिर (कैंपस में ही) गए। वहाँ माँ को धन्यवाद देने के साथ ही लगभग 30 मिनट तक उसकी चरणों में बैठे रहे। फिर कैंपस से बाहर निकले और गाड़ी में थोड़ा-बहुत डेंटिंग-पेंटिंग कराने के बाद उसके मालिक यानी राणेजी को सौंप दिए।।

दीपकजी के घुटने में थोड़ी चोट लगी थी पर 2-3 बार सेंकाई के बाद ठीक हो गई। पर जिस-जिसने उस घटना को देखा था...वे लोग जब भी मुझसे मिलते थे या हैं..उस घटना का जरूर जिक्र यह कहते हुए करते हैं कि वास्तव में कोई दैवीय शक्ति ने ही हमें बचाया था।

आज भी जब दीपकजी मिलते हैं और इस घटना की चर्चा होती है तो मुझे तो हँसी आ जाती है पर आज भी दीपकजी उदास हो जाते हैं और कहते हैं कि वास्तव में किसी ईश्वरी चमत्कार ने हम लोगों को बचा लिया।
क्या वास्तव में हम लोगों को हनुमानजी ने बचाया??? इसके पीछे भी एक सत्य घटना है जिसका वर्णन मैं इसके आगे के वृतांत में करूँगा।।
सादर धन्यवाद।।